हाईकोर्ट ने PMLA की धारा 66 की “आधिकारिक व्याख्या” की मांग करने वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है। जिसके तहत ED कथित तौर पर CBI और पुलिस पर संबंधित अपराध की FIR दर्ज करने के लिए “दबाव” डाल रहा है और “शिकायतकर्ता, वादी और पीड़ित” के रूप में कार्य कर रहा है।

जनहित याचिका में तर्क दिया गया था कि ED इन अपराधों में पीड़ित और मुखबिर होने का दावा कर रहा है और यहां तक ​​कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिकाएं दायर कर CBI और पुलिस को शिकायतों की जांच करने के निर्देश देने की मांग कर रहा है।

यह तर्क दिया गया था कि इससे “निंदनीय और अनिश्चित” स्थिति पैदा हो रही है। दिल्ली हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि PMLA की धारा 66 की “आधिकारिक व्याख्या” कोर्ट के एकल जज द्वारा आसानी से की जा सकती है। इसलिए, पीठ ने पीड़ित पक्षों को उचित कार्यवाही में उचित अदालतों के समक्ष इस मुद्दे को उठाने की स्वतंत्रता देते हुए याचिका का निपटारा कर दिया।

मामले की सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि इन अपराधों में शामिल सभी लोग उचित मंचों पर आरोपों का विरोध कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि “धनवान और शक्तिशाली” लोगों के लिए लोकस स्टैंडाई के सिद्धांत में ढील नहीं दी गई है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि एक संवैधानिक अदालत को इस मुद्दे पर गौर करना चाहिए और आज इतना आतंक है कि कोई भी व्यापारी ED के सामने पेश नहीं होना चाहता है। इस बीच, ED के वकील जोहेब हुसैन ने याचिका पर आपत्ति जताई और कहा कि जनहित याचिका निजी हित की बात करती है, सार्वजनिक हित की नहीं।

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